GP:प्रवचनसार - गाथा 18 - अर्थ
From जैनकोष
[उत्पाद:] किसी पर्याय से उत्पाद [विनाश: च] और किसी पर्याय से विनाश [सर्वस्य] सर्व [अर्थजातस्य] पदार्थमात्र के [विद्यते] होता है; [केन अपि पर्यायेण तु] और किसी पर्याय से [अर्थ:] पदार्थ [सद्भूत: खलु भवति] वास्तव में ध्रुव है ॥१८॥