GP:प्रवचनसार - गाथा 197 - अर्थ
From जैनकोष
[निहतघनघातिकर्मा] जिनने घनघातिकर्म का नाश किया है, [प्रत्यक्षं सर्वभावतत्वज्ञ:] जो सर्व पदार्थों के स्वरूप को प्रत्यक्ष जानते हैं और [ज्ञेयान्तगतः] जो ज्ञेयों के पार को प्राप्त हैं, [असंदेह: श्रमण:] ऐसे संदेह रहित श्रमण [कम् अर्थं] किस पदार्थ को [ध्यायति] ध्याते हैं?