GP:प्रवचनसार - गाथा 197 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
लोक को
- मोह का सद्भाव होने से तथा
- ज्ञानशक्ति के प्रतिबन्धक का सद्भाव होने से
- वह तृष्णा सहित है तथा
- उसे पदार्थ प्रत्यक्ष नहीं है और वह विषय को १अवच्छेदपूर्वक नहीं जानता,
- मोह का अभाव होने के कारण तथा
- ज्ञानशक्ति के प्रतिबंधक का अभाव होने से,
- तृष्णा नष्ट की गई है
- समस्त पदार्थों का स्वरूप प्रत्यक्ष है तथा ज्ञेयों का पार पा लिया है
१अवच्छेदपूर्वक = पृथक्करण करके; सूक्ष्मतासे; विशेषतासे; स्पष्टतासे ।
२अभिलषित = जिसकी इच्छा / चाह हो वह ।
३जिज्ञासित = जिसकी जिज्ञासा / जानने की इच्छा हो वह ।
४संदिग्ध = जिनमें संदेह / संशय हो ।
अब, सूत्र द्वारा (उपरोक्त गाथा के प्रश्न का) उत्तर देते हैं कि -- जिसने शुद्धात्मा को उपलब्ध किया है वह सकलज्ञानी (सर्वज्ञ आत्मा) इस (परम सौख्य) का ध्यान करता है --