GP:प्रवचनसार - गाथा 19 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब, शुद्धोपयोगके प्रभाव से स्वयंभू हुए इस (पूर्वोक्त) आत्मा के इन्द्रियों के बिना ज्ञान और आनन्द कैसे होता है ? ऐसे संदेह का निवारण करते हैं :-
शुद्धोपयोग के सामर्थ्य से जिसके घाति-कर्म क्षय को प्राप्त हुए हैं, क्षायोपशमिक ज्ञान-दर्शन के साथ असंपृक्त (संपर्क रहित) होने से जो अतीन्द्रिय हो गया है,
- समस्त अन्तराय का क्षय होने से अनन्त जिसका उत्तम वीर्य है,
- समस्त ज्ञानावरण और दर्शनावरण का प्रलय हो जाने से अधिक जिसका केवलज्ञान और केवलदर्शन नामक तेज है- ऐसा यह (स्वयंभू) आत्मा,
- समस्त मोहनीय के अभाव के कारण अत्यंत निर्विकार शुद्ध चैतन्य स्वभाव वाले आत्मा का (अत्यन्त निर्विकार शुद्ध चैतन्य जिसका स्वभाव है ऐसे आत्मा का) अनुभव करता हुआ