GP:प्रवचनसार - गाथा 200.1 - अर्थ
From जैनकोष
दर्शन से संशुद्ध, सम्यग्ज्ञान और उपयोग से सहित निर्बाध-रूप से स्वरूप-लीन सिद्ध-साधुओं को बारम्बार नमस्कर हो ।
दर्शन से संशुद्ध, सम्यग्ज्ञान और उपयोग से सहित निर्बाध-रूप से स्वरूप-लीन सिद्ध-साधुओं को बारम्बार नमस्कर हो ।