GP:प्रवचनसार - गाथा 200.1 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[णमो णमो] नमस्कार हो-नमस्कार हो । बारम्बार नमस्कार करता हूँ -- इसप्रकार भक्ति की अधिकता दिखाई है । किन्हें नमस्कार हो ? [सिद्धसाहूणं] सिद्ध, साधुओं को नमस्कार हो । सिद्ध शब्द से वाच्य अपने आत्मा की उपलब्धि लक्षण अरहन्त और सिद्धों को तथा साधु शब्द से वाच्य सिद्ध दशा को साधने वाले आचार्य, उपाध्याय और साधुओं को नमस्कर हो । और भी किस विशेषता वालों को नमस्कार हो ? [दंसणसंसुद्धाणं] तीन मूढ़ता आदि २५ दोषों से रहित, सम्यग्दर्शन से संशुद्ध जीवों को नमस्कार हो । और भी किस विशेषता वालों को नमस्कार हो ? [सम्मण्णाणोवजोगजुत्ताणं] संशय आदि दोषों से रहित ज्ञान सम्यग्ज्ञान है, उसका उपयोग सम्यग्ज्ञानोपयोग है, योग अर्थात् विकल्प-रहित समाधि स्वरूप-लीनता-रूप वीतराग-चारित्र ऐसा अर्थ है, उनसे सहित सम्यग्ज्ञानोपयोग से सहित, उनके लिये (इसप्रकार षष्ठी तत्पुरुष, तृतीया तत्पुरुष तथा चतुर्थी तत्पुरुष समास द्वारा विश्लेषण किया गया है) उन्हें नमस्कर हो । और भी किस स्वरूप-वालों को नमस्कर हो? [अव्वाबाधरदाणं] सम्यग्ज्ञान आदि रूप भावना से उत्पन्न अव्याबाध-बाधा-रहित और अनन्त सुख में लीन जीवों को नमस्कर हो ।
इसप्रकार नमस्कार गाथा सहित चार स्थलों द्वारा चौथा विशेषान्तराधिकार पूर्ण हुआ ।
इसप्रकार 'अत्थित्तणिच्छिदस्स हि' इत्यादि ग्यारह गाथाओं तक शुभोपयोग, अशुभोपयोग, शुद्धोपयोग इन तीन की मुख्यता से पहला विशेषान्तराधिकार, उसके बाद 'अपदेसो परमाणु पदेसमेत्तो य' इत्यादि नौ गाथाओं तक पुद्गलों के परस्पर बन्ध की मुख्यता से दूसरा विशेषान्तराधिकार तदुपरान्त 'अरसमरूवं' इत्यादि ११ गाथाओं तक पुद्गल कर्म के साथ जीव के बन्ध की मुख्यता से तीसरा विशेषान्तराधिकार और तत्पश्चात् 'ण चयदि जो ममत्ति' इत्यादि बारह गाथाओं तक विशेष भेद-भावना चूलिका व्याख्यान-रूप चौथा विशेषान्तराधिकार -- इसप्रकार ५१ गाथाओं द्वारा चार विशेषान्तराधिकार रूप से विशेष भेद-भावना नामक चौथा अधिकार पूर्ण हुआ ।
इसप्रकार 'श्री जयसेनाचार्य' कृत 'तात्पर्यवृत्ति' में 'तम्हा तस्स णमाइं' इत्यादि ३५ गाथाओं तक सामान्य ज्ञेय व्याख्यान, तदुपरान्त 'दव्यं जीवं' इत्यादि ११ गाथाओं तक जीव्-पुद्गल-धर्मादि भेद से विशेष ज्ञेय-व्याख्यान, तत्पश्चात् 'सपदेसेहिं समग्गो' इत्यादि आठ गाथाओं तक सामान्य भेद-भावना अधिकार और उसके बाद 'अत्थित्तणिच्छिदस्स हि' इत्यादि ५१ गाथाओं तक विशेष भेद-भावना-अधिकार -- इसप्रकार चार अधिकारों से ११३ गाथाओं द्वारा 'सम्यग्दर्शन अधिकार' अपर नाम 'ज्ञेयाधिकार' नामक दूसरा महाधिकार पूर्ण हुआ ।
कार्य की अपेक्षा यहाँ (२१४ वीं गाथा की पूर्णता पर) ही ग्रन्थ पूरा हो गया है -- ऐसा जानना चाहिये । ऐसा क्यों जानना चाहिये? यदि ऐसा प्रश्न हो तो कहते हैं -- 'उवसंपयामि सम्मं' साम्य का आश्रय ग्रहण करता हूँ -- इस प्रतिज्ञा की पूर्णता हो जाने से, यहाँ ही ग्रन्थ की पूर्णता जानना चाहिये ।