GP:प्रवचनसार - गाथा 201 - अर्थ
From जैनकोष
[यदि दु:खपरिमोक्षम् इच्छति] यदि दुःखों से परिमुक्त होने की (छुटकारा पाने की) इच्छा हो तो, [एवं] पूर्वोक्त प्रकार से (ज्ञानतत्त्व-प्रज्ञापन की प्रथम तीन गाथाओं के अनुसार) [पुन: पुन:] बारंबार [सिद्धान्] सिद्धों को, [जिनवरवृषभान्] जिनवरवृषभों को (अर्हन्तों को) तथा [श्रमणान्] श्रमणों को [प्रणम्य] प्रणाम करके, [श्रामण्य प्रतिपद्यताम्] (जीव) श्रामण्य को अंगीकार करो ॥२०१॥