GP:प्रवचनसार - गाथा 204 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[णाहं होमि परेसिं] मैं पर का नहीं हूं । अपने शुद्धात्मा से भिन्न दूसरे द्रव्यों का मैं सम्बन्धी नहीं हूँ । [ण मे परे] पर द्रव्य मेरे सम्बन्धी नहीं हैं । [णत्थि मज्झमिह किंचि] यहाँ मेरा कुछ भी नहीं है ! इस लोक में अपने शुद्धात्मा से भिन्न कुछ भी पर द्रव्य मेरा नहीं है । [इदि णिच्छिदो] इसप्रसर निश्चित बुद्धिवाला । [जिदिंदो जादो] तथा इन्द्रिय और मन से उत्पन्न विकल्प समूहों से रहित, अनन्त ज्ञानादि गुण स्वरूप अपने परमात्मद्रव्य से विपरीत, इन्द्रिय और मन को जीतने से जितेन्द्रिय होता हुआ [जधजादरूवधरो] यथाजातरूपधर व्यवहार से नग्नता यथाजातरूप है तथा निश्चय से अपना आत्मरूप यथाजातरूप है, वह इसप्रकार यथाजातरूप को धारण करता है - इसप्रकार यथाजातरूपधर निर्ग्रंन्थ अर्थात् आरम्भ-परिग्रह से रहित नग्न दिगम्बर होता है - ऐसा अर्थ है ॥२१८॥