GP:प्रवचनसार - गाथा 214 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
एक स्वद्रव्य-प्रतिबंध ही, उपयोग का मार्जन (शुद्धत्व) करने वाला होने से, मार्जित (शुद्ध) उपयोगरूप श्रामण्य की परिपूर्णता का आयतन है; उसके सद्भाव से ही परिपूर्ण श्रामण्य होता है । इसलिये सदा ज्ञान में और दर्शनादिक में प्रतिबद्ध रहकर मूलगुणों में प्रयत्नशीलता से विचरना—ज्ञानदर्शनस्वभाव शुद्धात्मद्रव्य में प्रतिबद्ध ऐसा शुद्ध अस्तित्वमात्ररूप से वर्तना, यह तात्पर्य है ॥२१४॥