GP:प्रवचनसार - गाथा 216 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[मदा] मानी गई है-सम्मत की गई है-स्वीकृत की गई है । कौन मानी गई है? [हिंसा] शुद्धोपयोग लक्षण श्रामण्य (मुनिपना) में छेद की कारणभूत हिंसा मानी गई है । वह हिंसा कैसी है? [संततिय त्ति] वह हिंसा सतत-निरन्तर है । हिंसा क्या मानी गई है ? [चरिया] चर्या-चेष्टा हिंसा मानी गई है । यदि वह चर्या कैसी हो तो हिंसा मानी गई है? [अपयत्ता वा] प्रयत्न रहित अथवा कषाय रहित आत्मानुभूतिरूप प्रयत्न से रहित-संक्लेश से सहित चर्या हिंसा मानी गई है - ऐसा अर्थ है । किन विषयों में आत्मानुभूति रहित चर्या हिंसा है? [सयणासणठाणचंकमादीसु] सोने, बैठने, उठने, जाने, स्वाध्याय करने, तपश्चरण करने आदि में आत्मानुभूति रहित-अप्रयत चर्या सतत हिंसा है । यह हिंसा किसके है? [समणस्स] श्रमण- मुनिराज के यह हिंसा है । उन्हें यह हिंसा कब है ? [सव्वकाले] सभी काली में उन्हें यह हिंसा है ।
यहाँ अर्थ यह है- मुनिराजों द्वारा बाह्य व्यापार रूप शत्रु तो पहले ही छोड़ दिये गये थे; भोजन, शयन आदि व्यापार छोड़ना संभव नहीं है । इस कारण अंतरंग क्रोधादि शत्रुओं के निग्रह के लिए, वहां भी संक्लेश नहीं करना चाहिये ।