GP:प्रवचनसार - गाथा 220 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब, इस उपधि (परिग्रह) का निषेध वह अंतरंग छेद का ही निषेध है, ऐसा उपदेश करते हैं :-
जैसे छिलके के सद्भाव में चावलों में पाई जाने वाली (रक्ततारूप) अशुद्धता का त्याग (नाश, अभाव) नहीं होता, उसी प्रकार बहिरंग संग के सद्भाव में अशुद्धोपयोगरूप अंतरंग छेद का त्याग नहीं होता और उसके सद्भाव में शुद्धोपयोगमूलक कैवल्य (मोक्ष) की उपलब्धि नहीं होती । (इससे ऐसा कहा गया है कि) अशुद्धोपयोगरूप अंतरंग छेद के निषेधरूप प्रयोजन की उपेक्षा रखकर विहित (आदेश) किया जाने वाला उपधि का निषेध वह अन्तरंग छेद का ही निषेध है ॥२२०॥