GP:प्रवचनसार - गाथा 224.4 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
अब उनके मोहादि की बहुलता को दिखाते हैं -
[संति धुवं पमदाणं] प्रमदाओं-स्त्रियों के ध्रुव-निश्चित हैं । स्त्रियों के वे क्या निश्चित हैं ? [मोह पदोसा भयं दुगुंछा य] मोह आदि से रहित अनन्त सुख आदि गुण स्वरूप मोक्ष के कारणों को रोकनेवाले मोह, प्रद्वेष, भय दुगुंछा-ग्लानिरूप परिणाम स्त्रियों के निश्चित हैं । [चित्ते चित्ता माया] कुटिलता-वक्रता आदि से रहित परमज्ञान-केवलज्ञान आदि रूप परिणति से विपरीत चित्त में- मन में चित्र- अनेक प्रकार की माया होती है, [तम्हा तासिं ण णिव्वाणं] इसलिये उनके, बाधाओं से रहित सुख आदि अनन्त गुणों का आधारभूत मोक्ष नहीं है- ऐसा अभिप्राय है ॥२४७॥