GP:प्रवचनसार - गाथा 224.5 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
अब इसे ही दृढ़ करते हैं -
[ण विणा वट्टदि णारी] स्त्री उनके बिना नहीं है, [एक्कं वा तेसु जीवलोयम्हि] उन दोषों रहित परमात्मा के ध्यान को नष्ट करनेवाले, पहले ( २४७ वीं गाथा में) कहे गये दोषों में से एक भी दोष को छोड़कर वह जीवलोक में नहीं है, [ण हि संउडं च गत्तं] वास्तव में उसका शरीर भी संवृत (ढंका हुआ) नहीं है, [तम्हा तासिं च संवरणं] और इसलिये उनका संवरण-वस्त्रावरण किया जाता है- उन्हें वस्त्रों से ढंका जाता है ॥२४८॥