GP:प्रवचनसार - गाथा 224.6 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
अब और भी निर्वाण को रोकनेवाले दोषों को दिखाते हैं -
[विज्जदि] पाया जाता है, [तासु अ] और उन स्त्रियों में । उन स्त्रियों में क्या पाया जाता है ? [चित्तस्सावि] चित्त का प्रवाह, काम वासना से रहित आत्मतत्त्व की अनुभूति को नष्ट करनेवाले मन का काम के उद्रेक (तीवता) से स्रव होना- राग से आर्द्र होना-चंचल होना उन स्त्रियों में पाया जाता है, [तासिं] उन स्त्रियों के [सित्थिल्लं] शिथिल का भाव- शिथिलता- उसी भव में मोक्ष जाने योग्य परिणामों के विषय में, मन की दृढ़ता का अभाव-सत्वहीन-कमजोर परिणाम होते है- ऐसा अर्थ है, [अत्तवं च पक्खलणं] ऋतु में होने वाले आर्तव का प्रस्खलन-रक्त का बहना, सहसा- जल्दी- प्रत्येक महिने में तीन दिन मन की शुद्धि को नष्ट करने वाला रक्त प्रवाह उनके होता है- ऐसा अर्थ है, [उप्पादो सुहममणुआणं] सूक्ष्म लब्ध्यपर्याप्तक मनुष्यों की उत्पत्ति होती है ॥२४९॥