GP:प्रवचनसार - गाथा 224.9 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
अब, उपसंहाररूप से स्थित पक्ष को दिखाते हैं -
[तम्हा] जिस कारण उसी भव से मोक्ष नहीं होता, उस कारण [तं पडिरूवं लिंगं तासिं जिणेहिं णिद्दिट्ठं] उनके प्रतिरूप वस्त्र-प्रावरण सहित लिंग-चिन्ह-लांछन उन स्त्रियों का, सर्वज्ञ-जिनेन्द्र भगवान द्वारा कहा गया है । [कुलरूववयोजुत्ता समणीओ] लोक में निन्दा-घृणा से रहित होने के कारण जिन दीक्षा के याग्य कुल-कुल कहलाता है । अंतरंग की विकार रहित मन की शुद्धि को बतानेवाला, बाहर में विकार रहित वेष - रूप कहलाता है; भंग रहित- अंगोपांग हीनता रहित शरीर अथवा अधिक बालपना या वृद्धपना से सम्बन्धित बुद्धि की विकलता (अस्थिरता) से रहित उम्र - वय कहलाती है; उन कुल, रूप, वय से सहित कुल-रूप-वय सहित होती हैं (इसप्रकार तृतीया तत्पुरुष समास किया) । कुल, रूप, वय से सहित कौन होती हैं? श्रमणी-अर्जिका-आर्यिका कुल, रूप, वय से सहित होती हैं । और भी वे किस विशेषता वाली हैं? [तस्समाचारा] उन स्त्रियों के योग्य-तद्योग्य- आचार-शास्त्र में कहा गया समाचार-आचार-आचरण है जिनका, वे उस समाचार सम्पन्न आर्यिकायें हैं ॥२५२॥