GP:प्रवचनसार - गाथा 227 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब, युक्ताहारविहारी साक्षात् अनाहारविहारी (-अनाहारी और अविहारी) ही है ऐसाउपदेश करते हैं :-
- स्वयं अनशन स्वभाव वाला होने से (अपने आत्मा को स्वयं अनशन स्वभाव वाला जानने से) और
- एषणादोषशून्य भिक्षा वाला होने से,
- आत्मा को स्वयं अनशन स्वभाव भाते हैं (समझते हैं, अनुभव करते हैं) और
- उसकी सिद्धि के लिये (पूर्ण प्राप्ति के लिये) एषणादोषशून्य ऐसी अन्य (पररूप) भिक्षा आचरते हैं;
इस प्रकार (जैसे युक्ताहारी साक्षात् अनाहारी ही है, ऐसा कहा गया है उसी प्रकार),
- स्वयं अविहारस्वभाव वाला होने से और
- समितिशुद्ध (इर्यासमिति से शुद्ध ऐसे) विहार वाला होने से