GP:प्रवचनसार - गाथा 236 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब, आगमज्ञान, तत्पूर्वक तत्त्वार्थश्रद्धान और तदुभय पूर्वक संयतत्त्व की युगपतता को मोक्षमार्गपना होने का नियम करते हैं । (अर्थात् ऐसा नियम सिद्ध करते हैं कि -- १. आगमज्ञान,२. तत्पूर्वक तत्त्वार्थश्रद्धान और ३. उन दोनों पूर्वक संयतपना इन तीनों का साथ होना ही मोक्षमार्ग है) :-
इस लोक में वास्तव में, स्यात्कार जिसका चिह्न है ऐसे आगमपूर्वक तत्त्वार्थश्रद्धानलक्षण वाली दृष्टि से जो शून्य है उन सभी को प्रथम तो संयम ही सिद्ध नहीं होता, क्योंकि
- स्वपर के विभाग के अभाव के कारण काया और कषायों के साथ एकता का अध्यवसाय करने वाले ऐसे वे जीव, विषयों की अभिलाषा का निरोध नहीं होने से छह जीवनिकाय के घाती होकर सर्वत: (सब ओर से) प्रवृत्ति करते हैं, इसलिये उनके सर्वत: निवृत्ति का अभाव है । (अर्थात् किसी भी ओर से किंचित्मात्र भी निवृत्ति नहीं है), तथापि
- उनके परमात्मज्ञान के अभाव के कारण ज्ञेयसमूह को क्रमश: जानने वाली निरर्गल ज्ञप्ति होने से ज्ञानरूप आत्मतत्त्व में एकाग्रता की प्रवृत्ति का अभाव है ।