GP:प्रवचनसार - गाथा 238 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
अब परमागमज्ञान-तत्त्वार्थश्रद्धान-संयतस्वरूप भेद-रत्नत्रय का युगपतपना होने पर भी, जो अभेद-रत्नत्रय स्वरूप विकल्प-रहित समाधि--स्वरूप-लीनता लक्षण आत्मज्ञान वही निश्चय से मुक्ति का कारण है; ऐसा प्रतिपादन करते हैं --
[जं अण्णाणी कम्मं खवेदि] विकल्प रहित समाधि रूप निश्चय रत्नत्रय स्वरूप विशिष्ट भेद-ज्ञान का अभाव होने से, अज्ञानी जीव जो कर्म नष्ट करता है । किन साधनों द्वारा वह कर्म नष्ट करता है? [भवसयसहस्सकोडीहिं] लाख करोड़ भवों द्वारा, वह जो कर्म नष्ट करता है । [तं णाणी तिहिं गुत्तो] वे कर्म ज्ञानी-जीव, तीन गुप्तियों से गुप्त होता हुआ [खवेदि उस्सासमेत्तेण] उच्छवास मात्र से नष्ट कर देता है ।
वह इसप्रकार- बाह्य विषय में परमागम के अभ्यास के बल से
- सम्यक् परिज्ञान,
- उसीप्रकार श्रद्धान और
- व्रतादि अनुष्ठान
- अपने शुद्धात्मा में जानकारी-रूप, सविकल्प ज्ञान,
- अपने शुद्धात्मा की उपादेयभूत रुचि के विकल्परूप सम्यग्दर्शन,
- उसी आत्मा में रागादि विकल्पों की निवृत्तिरूप सविकल्प चारित्र--