GP:प्रवचनसार - गाथा 241 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब, आगमज्ञान - तत्त्वार्थश्रद्धान - संयतत्त्व के युगपत्पने का तथा आत्मज्ञान का युगपत्पना जिसे सिद्ध हुआ है ऐसे इस संयत का क्या लक्षण है सो कहते हैं :-
संयम, सम्यग्दर्शनज्ञानपूर्वक चारित्र है; चारित्र धर्म है; धर्म साम्य है; साम्य मोहक्षोभ रहित आत्मपरिणाम है । इसलिये संयत का, साम्य लक्षण है ।
वहाँ,
- शत्रु-बंधुवर्ग में,
- सुख-दुःख में,
- प्रशंसा-निन्दा में,
- मिट्टी के ढेले और सोने में,
- जीवित-मरण में
- यह मेरा पर (शत्रु) है, यह स्व (स्वजन) है;
- यह आह्लाद है, यह परिताप है,
- यह मेरा उत्कर्षण (कीर्ति) है, यह अपकर्षण (अकीर्ति) है,
- यह मुझे अकिंचित्कर है, यह उपकारक (उपयोगी) है,
- यह मेरा स्थायित्व है, यह अत्यन्त विनाश है