GP:प्रवचनसार - गाथा 243 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब ऐसा दर्शाते हैं कि - अनेकाग्रता के मोक्षमार्गपना घटित नहीं होता (अर्थात् अनेकाग्रता मोक्षमार्ग नहीं है ) :-
जो वास्तव में ज्ञानात्मक आत्मारूप एक अग्र (विषय) को नहीं भाता, वह अवश्य ज्ञेयभूत अन्य द्रव्य का आश्रय करता है, और उसका आश्रय करके, ज्ञानात्मक आत्मा के ज्ञान से भ्रष्ट वह स्वयं अज्ञानी होता हुआ मोह करता है, राग करता है, अथवा द्वेष करता है; और ऐसा (मोही रागी अथवा द्वेषी) होता हुआ बंध को ही प्राप्त होता है; परन्तु मुक्त नहीं होता ।
इससे अनेकाग्रता को मोक्षमार्गपना सिद्ध नहीं होता ॥२४३॥