GP:प्रवचनसार - गाथा 246 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[सा सुहजुत्ता भवे चरिया] वह चर्या शुभयुक्त हो । किसके वह चर्या शुभ युक्त हो ? मुनि के वह चर्या शुभ युक्त हो । कैसे मुनिराज के, वह ऐसी हो? सम्पूर्ण रागादि विकल्प रहित परम समाधि (स्वरूप-स्थिरता) में ठहरने के लिये असमर्थ मुनि के, वह ऐसी हो । यदि क्या है तो ऐसी शुभयुक्त चर्या हो ? [विज्जदि जदि] यदि पाई जाती है तो वह हो? कहाँ पायी जाती है, तो वह हो? [सामण्णे] श्रामण्य-चारित्र में यदि पाई जाती है, तो वह हो । उसमें क्या पायी जाती है? [अरहंतादिसु भत्ती] अनन्त ज्ञान आदि गुणों से सहित अरहन्त-सिद्धों में, गुणों के प्रति अनुराग सहित भक्ति पायी जाती है । [वच्छलदा] वत्सल का भाव वत्सलता-वात्सल्य है, विनय अनुकूल वृत्ति-प्रवृत्ति रूप वत्सलता पायी जाती है । किन विषयों में वत्सलता पायी जाती है? [पवयणाभिजुत्तेसु] प्रवचन में अभियुक्तों के प्रति । यहाँ प्रवचन शब्द से आगम अथवा संघ कहा गया है, उस प्रवचन से अभियुक्त, प्रवचनाभियुक्त है (इसप्रकार तृतीया तत्पुरुष समास किया) अर्थात् आगम में लीन- स्वाध्याय-रत या संघ में स्थित आचार्य, उपाध्याय, साधुओं के प्रति उसमें वत्सलता पायी जाती है ।
इससे यह कहा गया है- स्वयं शुद्धोपयोग लक्षण परम सामयिक में ठहरने के लिए असमर्थ मुनि के, शुद्धोपयोग के फलस्वरूप केवलज्ञान परिणत अन्य जीवों के प्रति और उसीप्रकार शुद्धोपयोग के आराधक जीवों के प्रति, जो वह भक्ति है, वह शुभोपयोगी श्रमणों का लक्षण है ॥२८६॥