GP:प्रवचनसार - गाथा 247 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[ण णिंदिदा] निषिद्ध नहीं है । किसमें निषिद्ध नहीं हैं ? [रागचरियम्हि] शुभ राग चर्या में-सराग चारित्र अवस्था में निषिद्ध नहीं हैं । क्या निन्दित नहीं हैं ? [वंदणणमंसणेहिं अब्भुट्ठाणाणुगमणपडिवत्ति] वन्दन-नमस्कार के साथ अभ्युत्थान, अनुगमनरूप विनीत प्रवृति, निन्दित नहीं है । [समणेसु समावणओ] श्रमणों में श्रम को दूर करना-रत्नत्रयरूप भावना को नष्ट करनेवाले श्रम-खेद को नष्ट करना निन्दित नहीं है ।
इससे क्या कहा गया है- शुद्धोपयोग के साधक शुभोपयोग में स्थित मुनिराजों को रत्नत्रय की आराधना करनेवाले शेष पुरुषों के विषय में, इसप्रकार की शुभोपयोगरूप प्रवृत्तियाँ युक्त ही हैं-योग्य ही हैं ॥३०२॥