GP:प्रवचनसार - गाथा 250 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब, प्रवृत्ति संयम की विरोधी होने का निषेध करते हैं (अर्थात् शुभोपयोगी श्रमण के संयम के साथ विरोधवाली प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिये - ऐसा कहते हैं ) :-
जो (श्रमण) दूसरे के शुद्धात्मपरिणति की रक्षा हो ऐसे अभिप्राय से वैयावृत्य की प्रवृत्ति करता हुआ अपने संयम की विराधना करता है, वह गृहस्थधर्म में प्रवेश कर रहा होने से श्रामण्य से च्युत होता है । इससे (ऐसा कहा है कि) जो भी प्रवृत्ति हो वह सर्वथा संयम के साथ विरोध न आये इस प्रकार ही करनी चाहिये, क्योंकि प्रवृत्ति में भी संयम ही साध्य है ।