GP:प्रवचनसार - गाथा 251 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब प्रवृत्ति के विषय के दो विभाग बतलाते हैं (अर्थात् अब यह बतलाते हैं कि शुभोपयोगियों को किसके प्रति उपकार की प्रवृत्ति करना योग्य है और किसके प्रति नहीं) :-
जो अनुकम्पापूर्वक परोपकारस्वरूप प्रवृत्ति उसके करने से यद्यपि अल्प लेप तो होता है, तथापि अनेकान्त के साथ मैत्री से जिनका चित्त पवित्र हुआ है ऐसे शुद्ध जैनों के प्रति—जो कि शुद्धात्मा के ज्ञान-दर्शन में प्रवर्तमान वृत्ति के कारण साकार-अनाकार चर्या वाले हैं उनके प्रति,—शुद्धात्मा की उपलब्धि के अतिरिक्त अन्य सबकी अपेक्षा किये बिना ही, उस प्रवृत्ति के करने का निषेध नहीं है; किन्तु अल्प लेप वाली होने से सबके प्रति सभी प्रकार से वह प्रवृत्ति अनिषिद्ध हो ऐसा नहीं है, क्योंकि वहाँ (अर्थात् यदि सबके प्रति सभी प्रकार से की जाये तो) उस प्रकार की प्रवृत्ति से पर के और निज के शुद्धात्मपरिणति की रक्षा नहीं हो सकती ।