GP:प्रवचनसार - गाथा 252 - अर्थ
From जैनकोष
[रोगेण वा] रोग से, [क्षुधया] क्षुधा से, [तृष्णया वा] तृषा से [श्रमेण वा] अथवा श्रम से [रूढ़म्] आक्रांत [श्रमणं] श्रमण को [दृट्वा] देखकर [साधु:] साधु [आत्मशक्त्या] अपनी शक्ति के अनुसार [प्रतिपद्यताम्] वैयावृत्यादि करो ।