GP:प्रवचनसार - गाथा 256 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब कारण की विपरीतता और फल की विपरीतता बतलाते हैं :-
सर्वज्ञ-स्थापित वस्तुओं में युक्त शुभोपयोग का फल पुण्य-संचय-पूर्वक मोक्ष की प्राप्ति है । वह फल, कारण की विपरीतता होने से विपरीत ही होता है । वहाँ, छद्मस्थ-स्थापित वस्तुयें वे कारण विपरीतता है; उनमें व्रत-नियम-अध्ययन-ध्यान-दानरतरूप से युक्त शुभोपयोग का फल जो मोक्षशून्य केवल पुण्यापसद (अधम-पुण्य / हत-पुण्य) की प्राप्ति है वह फल की विपरीतता है; वह फल सुदेव-मनुष्यत्व है ॥२५६॥