GP:प्रवचनसार - गाथा 257 - अर्थ
From जैनकोष
[अविदितपरमार्थेषु] जिन्होंने परमार्थ को नहीं जाना है, [च] और [विषयकषायाधिकेषु] जो विषय-कषाय में अधिक हैं, [पुरुषेषु] ऐसे पुरुषों के प्रति [जुष्टं कृतं वा दत्तं] सेवा, उपकार या दान [कुदेवेषु मनुजेषु] कुदेवरूप में और कुमनुष्यरूप में [फलति] फलता है ।