GP:प्रवचनसार - गाथा 257 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब (इस गाथा में भी) कारण विपरीतता और फल विपरीतता ही बतलाते हैं :-
जो छद्मस्थस्थापित वस्तुयें हैं वे कारणविपरीतता हैं; वे (विपरीत कारण) वास्तव में
- शुद्धात्मज्ञान से शून्यता के कारण, 'परमार्थ के अजान' और
- शुद्धात्मपरिणति को प्राप्त न करने से विषयकषाय में अधिक