GP:प्रवचनसार - गाथा 257 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[फलदि] फलता है । किसरूप में फलता है? [कुदेवेसु मणुवेसु] कुत्सित देव-मनुष्यों के रूप में फलता है । क्या करना फलता है ? [जुट्ठं] सेवा करना, [कदं वा] कुछ भी वैयावृत्ति आदि करना, अथवा [दत्तं] कुछ भी आहार आदि देना कुदेवादि रूप में फलता है । ये सब किनके प्रति करने से, इस रूप फलते हैं ? [पुरिसेसु] ये सब पुरुषरूप पात्रों के प्रति करने से, ऐसे फलते हैं । किस विशेषता वाले पुरुष-पात्रों में करने से फलते हैं? [अविदिदपरमत्थेसु य] परमार्थ से अजानकार-परमात्मतत्त्व के श्रद्धान-ज्ञान से रहित पुरुषों में करने से फलते हैं । और किस स्वरूप वाले पुरुष में, करने से इस रूप में फलते हैं ? [विसयहसायाधिगेसु] विषय-कषायों में अधिक-विषय-कषायों के अधीन होने से, विषय-कषाय रहित शुद्धात्मस्वरूप की भावना से रहित पुरुषों में, ये सब करने से, वे कुदेवादि रूप में फलते हैं ॥२९५॥