GP:प्रवचनसार - गाथा 260 - अर्थ
From जैनकोष
[अशुभोपयोगरहिता:] जो अशुभोपयोगरहित वर्तते हुए [शुद्धोपयुक्ता:] शुद्धोपयुक्त [वा] अथवा [शुभोपयुक्ता:] शुभोपयुक्त होते हैं, वे (श्रमण) [लोकं निस्तारयन्ति] लोगों को तार देते हैं; (और) [तेषु भक्त:] उनके प्रति भक्तिवान जीव [प्रशस्तं] प्रशस्त (पुण्य) को [लभते] प्राप्त करता है ।