GP:प्रवचनसार - गाथा 260 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
शुद्धोपयोग-शुभोपयोग परिणत पुरुष पात्र हैं । वह इसप्रकार- विकल्प रहित समाधि- स्वरूप-स्थिरता के बल से, शुभ-अशुभ दोनों उपयोगों से रहित समय में, कभी वीतराग-चारित्र लक्षण शुद्धोपयोग से सहित तथा कभी मोह-राग-द्वेष और अशुभराग से रहित समय मे सराग-चारित्र लक्षण शुभोपयोग से सहित होते हुये, भव्य जीवों, को तारते हैं और उनके प्रति भक्तिवाले भव्यवरपुण्डरीक, भव्यों में श्रेष्ठ भक्तजन, प्रशस्त फलभूत स्वर्ग प्राप्त करते हैं और परम्परा से मोक्ष प्राप्त करते हैं- ऐसा भाव है ॥२९८॥
इसप्रकार पात्र-अपात्र परीक्षा सम्बन्धी कथन की मुख्यता से छह गाथाओं द्वारा, तीसरा स्थल समाप्त हुआ ।
(अब आठ गाथाओं में निबद्ध चौथा स्थल प्रारम्भ होता है)
इससे आगे, आचारशास्त्र में कहे गये क्रम से पहले कहा गया होने पर भी, फिर से दृढ़ करने के लिये विशेषरूप से मुनि का समाचार (परस्पर में विनयादि व्यवहार) कहते हैं ।