GP:प्रवचनसार - गाथा 263 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब श्रमणभासों के प्रति समस्त प्रवृत्तियों का निषेध करते हैं :-
जिनके सूत्रों में और पदार्थों में विशारदपने के द्वारा संयम, तप और स्वतत्त्व का ज्ञान प्रवर्तता है उन श्रमणों के प्रति ही अभ्युत्थानादिक प्रवृत्तियाँ अनिषिद्ध हैं, परन्तु उसके अतिरिक्त अन्य श्रमणाभासों के प्रति वे प्रवृत्तियाँ निषिद्ध ही हैं ॥२६३॥