GP:प्रवचनसार - गाथा 265 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब, जो श्रामण्य से समान हैं उनका अनुमोदन (आदर) न करनेवाले का विनाश बतलाते हैं :-
जो श्रमण द्वेष के कारण शासनस्थ श्रमण का भी अपवाद बोलता है और (उसके प्रति सत्कारादि) क्रियायें करने में अनुमत नहीं है, वह श्रमण द्वेष से कषायित होने से उसका चारित्र नष्ट हो जाता है ॥२६५॥