GP:प्रवचनसार - गाथा 273 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब मोक्षतत्त्व का साधन-तत्त्व प्रगट करते हैं :-
अनेकान्त के द्वारा ज्ञात सकल ज्ञातृतत्त्व और ज्ञेयतत्त्व के यथास्थित स्वरूप में जो प्रवीण हैं, अन्तरंग में चकचकित होते हुए अनन्तशक्ति वाले चैतन्य से भास्वर (तेजस्वी) आत्मतत्त्व के स्वरूप को जिनने समस्त बहिरंग तथा अन्तरंग संगति के परित्याग से विविक्त (भिन्न) किया है, और (इसलिये) अन्त:तत्त्व की वृत्ति (आत्मा की परिणति) स्वरूप गुप्त तथा सुषुप्त (जैसे कि सो गया हो) समान (प्रशांत) रहने से जो विषयों में किंचित् भी आसक्ति को प्राप्त नहीं होते,—ऐसे जो सकल-महिमावान् भगवन्त शुद्ध (शुद्धोपयोगी) हैं उन्हें ही मोक्षतत्त्व का साधनतत्त्व जानना । (अर्थात् वे शुद्धोपयोगी ही मोक्षमार्गरूप हैं), क्योंकि वे अनादि संसार से रचित-बन्द रहे हुए विकट कर्मकपाट को तोड़ने-खोलने के अति उग्र प्रयत्न से पराक्रम प्रगट कर रहे हैं ॥२७३॥