GP:प्रवचनसार - गाथा 31 - अर्थ
From जैनकोष
[यदि] यदि [ते अर्था:] वे पदार्थ [ज्ञाने न संति] ज्ञान में न हों तो [ज्ञानं] ज्ञान [सर्वगत] सर्वगत [न भवति] नहीं हो सकता [वा] और यदि [ज्ञानं सर्वगतं] ज्ञान सर्वगत है तो [अर्था:] पदार्थ [ज्ञानस्थिता:] ज्ञानस्थित [कथं न] कैसे नहीं हैं? (अर्थात् अवश्य हैं) ॥३१॥