GP:प्रवचनसार - गाथा 42 - अर्थ
From जैनकोष
[ज्ञाता] ज्ञाता [यदि] यदि [ज्ञेयं अर्थं] ज्ञेय पदार्थ-रूप [परिणमति] परिणमित होता हो तो [तस्य] उसके [क्षायिकं ज्ञानं] क्षायिक ज्ञान [न एव इति] होता ही नहीं । [जिनेन्द्रा:] जिनेन्द्र देवों ने [तं] उसे [कर्म एव] कर्म को ही [क्षपयन्तं] अनुभव करने वाला [उक्तवन्तः] कहा है ॥४२॥