GP:प्रवचनसार - गाथा 43 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
(यदि ऐसा है) तो फिर ज्ञेय पदार्थरूप परिणमन जिसका लक्षण है ऐसी(ज्ञेयार्थ-परिणमनस्वरूप) क्रिया और उसका फल कहाँ से (किस कारण से) उत्पन्न होता है, ऐसा अब विवेचन करते हैं :-
प्रथम तो, संसारी के नियम से उदयगत पुद्गल कर्मांश होते ही हैं । अब वह संसारी, उन उदयगत कर्मांशों के अस्तित्व में, चेतते-जानते- अनुभव करते हुए, मोह-राग- द्वेष में परिणत होने से ज्ञेय पदार्थों में परिणमन जिसका लक्षण है ऐसी (ज्ञेयार्थ परिणमन-स्वरूप) क्रिया के साथ युक्त होता है; और इसीलिये क्रिया के फलभूत बन्ध का अनुभव करता है । इससे (ऐसा कहा है कि) मोह के उदय से ही (मोह के उदय में युक्त होने के कारण से ही) क्रिया और क्रिया फल होता है, ज्ञान से नहीं ॥४३॥