GP:प्रवचनसार - गाथा 46 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब, केवली-भगवान की भाँति समस्त जीवों के स्वभाव-विघात का अभाव होने का निषेध करते हैं :-
यदि एकान्त से ऐसा माना जाये कि शुभाशुभ-भावरूप स्वभाव में (अपने भाव में) आत्मा स्वयं परिणमित नहीं होता, तो यह सिद्ध हुआ कि (वह) सदा ही सर्वथा निर्विघात शुद्धस्वभाव से ही अवस्थित है; और इसप्रकार समस्त जीवसमूह, समस्त बन्धकारणों से रहित सिद्ध होने से संसार अभावरूप स्वभाव के कारण नित्य-मुक्तता को प्राप्त हो जायेंगे अर्थात् नित्य-मुक्त सिद्ध होवेगे ! किन्तु ऐसा स्वीकार नहीं किया जा सकता; क्योंकि आत्मा परिणाम-धर्मवाला होने से, जैसे स्फटिकमणि जपाकुसुम और तमालपुष्प के रंग-रूप स्वभाव-युक्तता से प्रकाशित होता है उसीप्रकार, उसे (आत्मा के) शुभाशुभ-स्वभावयुक्तता प्रकाशित होती है । (जैसे स्फटिकमणि लाल और काले फूल के निमित्त से लाल और काले स्वभाव में परिणमित दिखाई देता है उसीप्रकार आत्मा कर्मोपाधि के निमित्त से शुभाशुभ स्वभावरूप परिणमित होता हुआ दिखाई देता है) ।