GP:प्रवचनसार - गाथा 49 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
अब एक को नहीं जानता हुआ सबको नहीं जानता है, ऐसा निश्चित करते हैं -
[दव्वं] - द्रव्य [अणंतपज्जयं] - अनन्त पर्याय [एगं] - एक [अणंताणि दव्वजादीणि] - अनन्त द्रव्य समूह को [जो ण विजाणदि] - जो नहीं जानता है, [किध सो सव्वाणि जाणादि] - वह सबको कैसे जान सकता है? [जुगवं] - युगपत् - एक समय में, किसी भी तरह नहीं जान सकता है ।
वह इसप्रकार- ज्ञान आत्मा का लक्षण है और वह अखण्ड प्रतिभासमय सभी जीवों में सामान्यरूप से पाया जाने वाला महासामान्यरूप है । और वह महासामान्य ज्ञानमय अनन्त विशेषों में व्याप्त है । और वे ज्ञान विशेष विषयभूत, ज्ञेयभूत अनन्त द्रव्य-पर्यायों के ज्ञायक-ग्राहक-जाननेवाले हैं । अखण्ड एक प्रतिभासमय जो महासामान्य उस स्वभाववाले आत्मा को जो वह प्रत्यक्ष नहीं जानता, तो वह पुरुष प्रतिभासमय महासामान्य से व्याप्त जो अनन्त ज्ञानविशेष, उनके विषयभूत जो अनन्त द्रव्य-पर्यायें, उन्हें कैसे जान सकता है? किसी भी प्रकार नहीं जान सकता ।
इससे यह निश्चित हुआ कि जो आत्मा को नहीं जानता वह सर्व को नहीं जानता । वैसा ही कहा है -
एक भाव सर्वभाव-स्वभाववाला है, सभी भाव एकभाव-स्वभाववाले हैं; अत: जिसके द्वारा एक भाव वास्तविकरूप से जान लिया गया है, उसके द्वारा सभी भाव वास्तविकरूप से जान लिये गये हैं ।
यहाँ शिष्य कहता है - आत्मा की विशिष्ट जानकारी होने पर सभी की जानकारी होती है - ऐसा यहाँ कहा गया है, वहाँ पहले (४९वीं गाथा में) सर्व की जानकारी होने पर आत्मा की जानकारी होती है - ऐसा कहा था । यदि ऐसा है तो छद्मस्थजीवों को तो सभी की जानकारी नहीं है, उन्हें आत्मा की जानकारी कैसे होगी? आत्मा की जानकारी के अभाव में आत्मभावना कैसे होगी? और उसके अभाव में केवलज्ञान की उत्पत्ति नहीं होती है ।
आचार्य इसका निराकरण करते हैं – परोक्ष प्रमाणभूत श्रुतज्ञान द्वारा सभी पदार्थ जाने जाते है । श्रुतज्ञान द्वारा सभी पदार्थ कैसे जाने जाते हैं ? यदि यह शंका हो तो कहते हैं – छद्मस्थों के भी व्याप्तिज्ञान (अनुमान ज्ञान) रूप से लोकालोकादि की जानकारी पायी जाती है। तथा केवलज्ञान सम्बन्धी विषय को ग्रहण करने वाला वह व्याप्तिज्ञान परोक्षरूप से कथंचित आत्मा ही कहा गया है । अथवा स्वसंवेदनज्ञान से आत्मा जाना जाता है, और उससे भावना की जाती है, और उस रागादि विकल्प रहित स्वसंवेदन ज्ञानरूप भावना से केवलज्ञान उत्पन्न होता है – इसप्रकार दोष नहीं है ।