GP:प्रवचनसार - गाथा 50 - अर्थ
From जैनकोष
[यदि] यदि [ज्ञानिनः ज्ञानं] आत्मा का ज्ञान [क्रमश:] क्रमश: [अर्थान् प्रतीत्य] पदार्थों का अवलम्बन लेकर [उत्पद्यते] उत्पन्न होता हो [तत्] तो वह (ज्ञान) [न एव नित्यं भवति] नित्य नहीं है, [न क्षायिकं] क्षायिक नहीं है, [न एव सर्वगतम्] और सर्वगत नहीं है ॥५०॥