GP:प्रवचनसार - गाथा 51 - अर्थ
From जैनकोष
[त्रैकाल्यनित्यविषमं] तीनों काल में सदा विषम (असमान जाति के), [सर्वत्र संभवं] सर्व क्षेत्र के [चित्रं] विचित्र (अनेक प्रकार के) [सकलं] समस्त पदार्थों को [जैनं] जिनदेव का ज्ञान [युगपत् जानाति] एक साथ जानता है [अहो हि] अहो ! [ज्ञानस्य माहात्म्यम्] ज्ञान का माहात्म्य ! ॥५१॥