GP:प्रवचनसार - गाथा 58 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब, परोक्ष और प्रत्यक्ष के लक्षण बतलाते हैं :-
- निमित्तता को प्राप्त (निमित्त-रूप बने हुए) ऐसे जो परद्रव्यभूत अंतःकरण (मन), इन्द्रिय, १परोपदेश, २उपलब्धि, ३संस्कार या ४प्रकाशादिक हैं उनके द्वारा होने वाला जो स्व-विषयभूत पदार्थ का ज्ञान, वह पर के द्वारा ५प्रादुर्भाव को प्राप्त होने से 'परोक्ष' -के रूप में जाना जाता है, और
- अंतःकरण, इन्द्रिय, परोपदेश, उपलब्धि संस्कार या प्रकाशादिक-सब पर-द्रव्य की अपेक्षा रखे बिना एकमात्र आत्म-स्वभाव को ही कारण-रूप से ग्रहण करके सर्व द्रव्य-पर्यायों के समूह में एक समय ही व्याप्त होकर प्रवर्तमान ज्ञान वह केवल आत्मा के द्वारा ही उत्पन्न होने से 'प्रत्यक्ष' के रूप में जाना जाता है ।
१परोपदेश = अन्य का उपदेश
२उपलब्धि = ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम के निमित्त से उत्पन्न पदार्थों को जानने की शक्ति (यह 'लब्ध' शक्ति जब 'उपर्युक्त' होती है, तभी पदार्थ ज्ञात होता है)
३संस्कार = पूर्व ज्ञात पदार्थ की धारणा
४चक्षुइन्द्रिय द्वारा रूपी पदार्थ को देखने में प्रकाश भी निमित्तरूप होता है
५प्रादुर्भाव को प्राप्त = प्रगट उत्पन्न