GP:प्रवचनसार - गाथा 62 - अर्थ
From जैनकोष
’[विगतघातिनां] जिनके घाति-कर्म नष्ट हो गये हैं उनका [सौख्यं] सुख [सुखेषु परमं] (सर्व) सुखों में परम अर्थात् उत्कृष्ट है' [इति श्रुत्वा] ऐसा वचन सुनकर [न श्रद्दधति] जो श्रद्धा नहीं करते [ते अभव्या:] वे अभव्य हैं; [भव्या: वा] और भव्य [तत्] उसे [प्रतीच्छन्ति] स्वीकार (आदर) करते हैं - उसकी श्रद्धा करते हैं ॥६२॥