GP:प्रवचनसार - गाथा 67 - अर्थ
From जैनकोष
[यदि] यदि [जनस्य दृष्टि:] प्राणी की दृष्टि [तिमिरहरा] तिमिर-नाशक हो तो [दीपेन नास्ति कर्तव्यं] दीपक से कोई प्रयोजन नहीं है, अर्थात् दीपक कुछ नहीं कर सकता, [तथा] उसी प्रकार जहाँ [आत्मा] आत्मा [स्वयं] स्वयं [सौख्यं] सुख-रूप परिणमन करता है [तत्र] वहाँ [विषया:] विषय [किं कुर्वन्ति] क्या कर सकते हैं? ॥६७॥