GP:प्रवचनसार - गाथा 73 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
शक्रेन्द्र और चक्रवर्ती अपनी इच्छानुसार प्राप्त भोगों के द्वारा शरीरादि को पुष्ट करते हुए-जैसे गोंच (जोंक) दूषित रक्त में अत्यन्त आसक्त वर्तती हुई सुखी जैसी भासित होती है, उसी प्रकार-उन भोगों में अत्यन्त आसक्त वर्तते हुए सुखी जैसे भासित होते हैं; इसलिये शुभोपयोग-जन्य फलवाले पुण्य दिखाई देते हैं । (अर्थात् शुभोपयोगजन्य फलवाले पुण्यों का अस्तित्व दिखाई देता है) ॥७३॥