GP:प्रवचनसार - गाथा 79.2 - तात्पर्य-वृत्ति - हिंदी
From जैनकोष
[तं देवदेवदेवं] - सौधर्मेन्द्रादि देवों के भी देव-देवेन्द्र हैं, उनके देव-आराध्य - उन देवाधिदेव को, [जदिवरवसहं] - जितेन्द्रियत्व होने से निजशुद्धात्मा में प्रयत्नशील यति हैं, उनमें श्रेष्ठ गणधर देवादि हैं, उनमें भी प्रधान यतिवर वृषभ--उन यतिवर-वृषभ को [गुरुम् तिलोयस्स] - अनन्त ज्ञानादि महान गुणों के द्वारा तीन लोक के भी गुरु - उन त्रिलोकगुरु को [पणमंति जे मणुस्सा] - इसप्रकार के उन भगवान को जो मनुष्यादि द्रव्य-भाव नमस्कार पूर्वक प्रणाम करते हैं - उनकी आराधना करते हैं, [ते सोक्खं अक्खयं जंति] - वे उस आराधना के फल-स्वरूप परम्परा से अक्षय-अनन्त सौख्य को प्राप्त करते हैं - यह गाथा का भाव है ।