GP:प्रवचनसार - गाथा 7 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब चारित्र का स्वरूप व्यक्त करते हैं :-
स्वरूप में चरण करना (रमना) सो चारित्र है । स्वसमय में प्रवृत्ति करना (अपने स्वभाव में प्रवृत्ति करना) ऐसा इसका अर्थ है । यही वस्तु का स्वभाव होने से धर्म है । शुद्ध चैतन्य का प्रकाश करना यह इसका अर्थ है । वही यथावस्थित आत्म गुण होने से (विषमता-रहित सुस्थित आत्मा का गुण होने से) साम्य है । और साम्य, दर्शन-मोहनीय तथा चारित्र-मोहनीय के उदय से उत्पन्न होने वाले समस्त मोह और क्षोभ के अभाव के कारण अत्यन्त निर्विकार ऐसा जीव का परिणाम है ॥७॥