GP:प्रवचनसार - गाथा 8 - अर्थ
From जैनकोष
[द्रव्यं] द्रव्य जिस समय [येन] जिस भावरूप से [परिणमति] परिणमन करता है [तत्कालं] उस समय [तन्मयं] उस मय है [इति] ऐसा [प्रज्ञप्तं] (जिनेन्द्र देव ने) कहा है; [तस्मात्] इसलिये [धर्मपरिणत: आत्मा] धर्मपरिणत आत्मा को [धर्म: मन्तव्य:] धर्म समझना चाहिये ॥८॥