GP:प्रवचनसार - गाथा 8 - तत्त्व-प्रदीपिका - हिंदी
From जैनकोष
अब आत्मा की चारित्रता (अर्थात् आत्मा ही चारित्र है ऐसा) निश्चय करते हैं :-
वास्तव में जो द्रव्य जिस समय जिस भावरूप से परिणमन करता है, वह द्रव्य उस समय उष्णता रूप से परिणमित लोहे के गोले की भाँति उस मय है, इसलिये यह आत्मा धर्मरूप परिणमित होने से धर्म ही है । इसप्रकार आत्मा की चारित्रता सिद्ध हुई ॥८॥