GP:प्रवचनसार - गाथा 92.2 - अर्थ
From जैनकोष
मनुष्य और तिर्यंच उस पुण्य द्वारा देव या मनुष्य गति को प्राप्त कर वैभव और ऐश्वर्य से सदा परिपूर्ण मनोरथ वाले होते हैं ॥१०१॥
मनुष्य और तिर्यंच उस पुण्य द्वारा देव या मनुष्य गति को प्राप्त कर वैभव और ऐश्वर्य से सदा परिपूर्ण मनोरथ वाले होते हैं ॥१०१॥